आयातित मुद्रास्फीति(Imported Inflation
आयातित मुद्रास्फीति(Imported Inflation)
जब आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण किसी देश में सामान्य मूल्य स्तर बढ़ जाता है, तो इसे आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) कहा जाता है।
हालाँकि सदैव ऐसा नहीं होता कि आयातित वस्तुओं की कीमत में वृद्धि के कारण ही आयातित मुद्रास्फीति में वृद्धि हो। कभी-कभी घरेलू मुद्रा के मूल्यह्रास (Depreciation) के कारण भी आयातित मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
उदाहरण के लिये यदि किसी विशेष अवधि में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में 20 प्रतिशत की गिरावट आती है, तो तेल की कीमत भी उसी अनुपात से बढ़ेगी और मूल्य स्तर तथा मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगी।
भारत कच्चे तेल की अपनी ज़रूरतों का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। यदि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होती है तो स्वाभाविक है कि भारत को अधिक कीमत चुकानी होगी, जिसके कारण देश का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़ सकता है।
आयातित मुद्रास्फीति के कारण
घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास : आयातित मुद्रास्फीति का सबसे बड़ा कारण है घरेलू मुद्रा के मूल्य में गिरावट होती है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में मुद्रा का जितना अधिक मूल्यह्रास होता है, आयात की कीमत भी उतनी ही अधिक होती है और परिणामस्वरूप देश के बाहर वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिये अधिक धन की आवश्यकता होती है। जब देश में आयात करने वाली कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वस्तुएँ महँगी मिलेंगी तो वे भी उसी अनुपात में देश में वस्तुओं की कीमत में वृद्धि करेंगी और आम जनता के लिये वस्तु अपेक्षाकृत महँगी हो जाएगी।
भारत के संदर्भ में आयातित मुद्रास्फीति
भारत के आयात में दो प्रमुख योगदानकर्ता हैं: कच्चा तेल और सोना। सामान्यतः इन दोनों उत्पादों की कीमतों में वृद्धि से देश के आयात बिल में बढ़ोतरी होती है।
यह उम्मीद की जा रही है कि वैश्विक स्तर पर सुस्ती के कारण कच्चे तेल की कीमतें कम बनी रहेंगी, परंतु सोने की अधिक मांग के कारण उसकी कीमतों में तेज़ी आ सकती है।
उल्लेखनीय है कि सर्राफा बाज़ार में सोने की कीमत अधिकतम स्तर पर है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें