दण्ड की परिभाषा और दंड के उद्देश्य और दंड के सिद्धांत कौन-कौन से हैं

आज हम बात करेंगे दण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार की। सबसे पहले हम यह जानेंगे कि दण्ड क्या है ? प्राचीन काल से ही समाज में दण्ड की व्यवस्था रही है और समय-समय पर दण्ड का स्वरूप भी बदलता रहा है जहां प्राचीन काल में दंड का भयावह स्वरूप अथवा अत्यधिक क्रूर स्वरूप प्रचलन में था वही वर्तमान में दंड का सुधारात्मक स्वरूप प्रचलन में है । इन सबसे पहले हमें दंड के बारे में जानना आवश्यक है।दण्ड क्या है
किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य के बदले, जो समाज विरोधी है या जिसे विधि के अंतर्गत अपराध माना गया है, दिए गए कष्ट को, जो शारीरिक या आर्थिक रूप में हो सकता है दण्ड कहते हैं।

संविधान में उल्लेखित मूल कर्तव्य के बारे में जाने

दण्ड की परिभाषा
कुछ विद्वानों के अनुसार दण्ड कि परिभाषा निम्नलिखित हैं –
सेठना (sethna) के अनुसार, "दण्ड एक प्रकार की सामाजिक निंदा है, और उसमें यह जरूरी नहीं है कि शारीरिक कष्ट अनिवार्य रूप से सम्मिलित हो।"
टाफ्ट (Taft) के अनुसार, "दण्ड वह जागरूक दबाव है, जो समाज में शांति भंग करने वाले व्यक्ति को अवांछनीय अनुभवों वाला कष्ट देता है।"
दण्ड का उद्देश्य
दंड का मुख्य उद्देश्य समाज में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना होता है । प्राचीन काल में अपराधी को दंड देने का मुख्य उद्देश्य समाज के अन्य व्यक्तियों को भयभीत करना होता था जिससे समाज में शांति बनी रहे जबकि वर्तमान में दंड का मुख्य उद्देश्य अपराधी को सुधारना है ।वर्तमान दंड व्यवस्था यह कहती है, "हमें अपराध का अंत करना है अपराधी का नहीं"
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मुख्यपृष्ठI.P.Cदण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार
दण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार
Advocate Varsha gargमार्च 14, 2021
 


 
आज हम बात करेंगे दण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार की। सबसे पहले हम यह जानेंगे कि दण्ड क्या है ? प्राचीन काल से ही समाज में दण्ड की व्यवस्था रही है और समय-समय पर दण्ड का स्वरूप भी बदलता रहा है जहां प्राचीन काल में दंड का भयावह स्वरूप अथवा अत्यधिक क्रूर स्वरूप प्रचलन में था वही वर्तमान में दंड का सुधारात्मक स्वरूप प्रचलन में है । इन सबसे पहले हमें दंड के बारे में जानना आवश्यक है।


दण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार


 
दण्ड क्या है
किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य के बदले, जो समाज विरोधी है या जिसे विधि के अंतर्गत अपराध माना गया है, दिए गए कष्ट को, जो शारीरिक या आर्थिक रूप में हो सकता है दण्ड कहते हैं।

संविधान में उल्लेखित मूल कर्तव्य के बारे में जाने

दण्ड की परिभाषा
कुछ विद्वानों के अनुसार दण्ड कि परिभाषा निम्नलिखित हैं –
सेठना (sethna) के अनुसार, "दण्ड एक प्रकार की सामाजिक निंदा है, और उसमें यह जरूरी नहीं है कि शारीरिक कष्ट अनिवार्य रूप से सम्मिलित हो।"
टाफ्ट (Taft) के अनुसार, "दण्ड वह जागरूक दबाव है, जो समाज में शांति भंग करने वाले व्यक्ति को अवांछनीय अनुभवों वाला कष्ट देता है।"

 
दण्ड का उद्देश्य
दंड का मुख्य उद्देश्य समाज में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना होता है । प्राचीन काल में अपराधी को दंड देने का मुख्य उद्देश्य समाज के अन्य व्यक्तियों को भयभीत करना होता था जिससे समाज में शांति बनी रहे जबकि वर्तमान में दंड का मुख्य उद्देश्य अपराधी को सुधारना है ।वर्तमान दंड व्यवस्था यह कहती है, "हमें अपराध का अंत करना है अपराधी का नहीं"।
जाने आईपीसी और सीआरपीसी में अंतर

 

दण्ड के सिद्धांत
दंड की मुख्यता पांच सिद्धांत है –
प्रतिशोधात्मक सिद्धांत (Retributive Theory)
प्रतिरोधात्मक सिद्धांत (Detterent Theory)
निरोधात्मक सिद्धांत (Preventive Theory)
सुधारात्मक सिद्धांत (Reformative Theory)
आदर्शात्मक सिद्धांत (Idealistic Theory)
(1) प्रतिशोधात्मक सिद्धांत (Retributive Theory)
यह बदले की भावना पर आधारित है अर्थात "जैसी करनी वैसी भरनी" जैसे, आंख के बदले आंख और खून के बदले खून । इस सिद्धांत के अनुसार, जितनी क्षति अपराधी द्वारा पहुंचाई गई है उतनी क्षति उसे भी पहुंचनी चाहिए तभी वह अपराधी प्रवृत्ति से मुक्त हो सकेगा।
(2) प्रतिरोधात्मक सिद्धांत (Detterent Theory)
इस सिद्धांत के अनुसार, अपराधी को ऐसा दंड मिलना चाहिए जिससे समाज के अन्य व्यक्ति भयभीत हो सके और अपराध से दूर रहे । इसमें अपराधी को उसके अपराध से गंभीर दंड दिया जाता था जिससे वह स्वयं भी अपराध करना छोड़ दें।
(3) निरोधात्मक सिद्धांत (Preventive Theory)
इस सिद्धांत का अभिप्राय अपराधी को अपराध करने से रोकना है जिससे समाज सुरक्षित हो सके । जिसके लिए अपराधी को समाज से पृथक कर दिया जाता है जैसे कारागार में डालना, बहिष्कार आदि।
(4) सुधारात्मक सिद्धांत (Reformative Theory)
सुधारात्मक सिद्धांत का अभिप्राय अपराधी व्यक्ति को सुधारना है ,उसका इलाज करना है । इसका उद्देश्य अपराधी को अच्छा व्यक्ति बनाना है , इसके लिए अपराधियों को कारागार में अनेक प्रकार का ज्ञान दिया जाता है। आज के समय में दंड का सुधारात्मक सिद्धांत ही अधिक उपयोगी माना गया है।

दंड का मुख्य उद्देश्य भय उत्पन्न करना या अपराधों की रोकथाम करना नहीं है बल्कि न्याय की स्थापना करना भी है। यह सिद्धांत कहता है कि, उचित यही है कि अपराधी व्यक्ति को उतना ही दण्ड दिया जाए, जितना अपराध की प्रवृत्ति के अनुकूल हो। क्योंकि व्यक्ति अपराध अनैतिकता के विवश होकर करता है , अतः दण्ड का मुख्य उद्देश अपराधी व्यक्ति को नैतिक बनाना है।
। दण्ड के विभिन्न सिद्धांत। 

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