प्रीतम सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब (ए.आई.आर. 1956 एस.सी. 415) Pritam Singh Vs. State of Punjab (AIR 1956 SC 415)

 प्रीतम सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब (ए.आई.आर. 1956 एस.सी. 415)

 Pritam Singh Vs. State of Punjab (AIR 1956 SC 415)

भूमिका

यह प्रकरण दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 342, 367, 403 आदि से सम्बन्धित है। इसमें उच्चतम न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की पहचान, पद-चिन्हों के महत्त्व एवं विशेष इजाजत से की गई अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता से जुड़े प्रश्न विचारणीय थे।

तथ्य

इस प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं-2 मई, 1953 की सायं लगभग 6 बजे प्रीतम सिंह लोहारा तथा करतार सिंह नामक दो व्यक्ति अमृतसर बस स्टैण्ड से एक लॉरी पर चढ़े। उस लॉरी में चाननसिंह एवं सार्दूलसिंह नाम के दो व्यक्ति भी यात्रा कर रहे थे। रास्ते में दो और यात्री प्रीतमसिंह फतहपुरी और गुरदयालसिंह उस लॉरी में चढ़े और प्रीतमसिंह लोहारा के पास की खाली सीटों पर बैठ गये। बोहारू गाँव के पास दोनों प्रीतमसिंह ने लॉरी को रुकवाया और करतार सिंह तथा गुरदयालसिंह वहाँ उतर गये। इस दौरान प्रीतमसिंह फतहपुरी व गुरदयालसिंह ने चाननसिंह पर और प्रीतमसिंह लोहारा व करतारसिंह ने सार्दूलसिंह पर बन्दूक की गोलियाँ चलाई जिससे घटनास्थल पर ही उन दोनों की मृत्यु हो गई। वे सार्दूलसिंह तथा चाननसिंह से उनकी राइफल व रिवाल्वर छीनकर भाग गये। मार्ग में उन्हें चार साइकिल वाले व्यक्ति मिले जिनसे प्रीतमसिंह वगैरह ने साइकिलें छीन ली और वे उन साइकिलों पर बैठकर चले गये। लॉरी के चालक का नाम भी प्रीतमसिंह था।

चालक ने अमृतसर के सदर पुलिस थाने में सायं के 7.45 बजे घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई। लगभग 8.30 बजे अन्वेषण अधिकारी घटना स्थल पर पहुँचा और वहाँ लॉरी में यात्रा कर रहे व्यक्तियों के बयान लेखबद्ध किये। उन यात्रियों में ठाकुरसिंह नाम का एक पुलिसकर्मी भी था जिसने अभियुक्तगणों की पहचान बताई। अन्वेषण के दौरान पास के खेतों में अभियुक्तगणों के पद-चिह्न भी तलाश लिये गये। एक खेत में से पदचिह्नों के 8 तथा दूसरे खेत में से 4 निशान लिये गये। प्रीतमसिंह फतहपुरी की पहचान हो जाने से उसके घर का ताला तोड़कर वहाँ से खून से भरा हुआ एक बुशर्ट तथा जूतों का जोड़ा जब्त किया गया। 27 मई, को प्रीतमसिंह फतहपुरी को राइफल सहित गिरफ्तार भी कर लिया गया। 29 मई,

1953 को प्रीतमसिंह फतहपुरी की मजिस्ट्रेट के समक्ष पहचान परेड में पहचान भी कराई गई। पहचान परेड में ठाकुर सिंह व राजपाल सिंह द्वारा उसे पहचान लिया गया, लेकिन अभियुक्त की ओर से इस पहचान पर यह आपत्ति की गई कि ठाकुरसिंह से उसकी दुश्मनी थी। गुरदीपसिंह नाम के व्यक्ति ने भी उसे पहचान लिया था। दियालसिंह ने भी पहचान स्थापित करते हुए कहा कि लॉरी को। रुकवाने वाले व्यक्तियों में से एक वह भी था। 16 जून, 1953 को दुबारा पहचान परेड कराई गई लेकिन इसमें कोई भी व्यक्ति अभियुक्तगणों की पहचान स्थापित नहीं कर सका।


उधर 9 जून, 1953 को प्रीतमसिंह लोहारा को फरीदकोट में गिरफ्तार कर लिया गया। प्रीतमसिंह लोहारा की सूचना पर एक टिन में बुशर्ट में लिपटी दो रिवाल्वर बरामद की गई। 17 जून को प्रीतमसिंह लोहारा की पहचान परेड में शिनाख्त कराई गई। शिनाख्त परेड में 12 व्यक्तियों को मिलाया गया और 16 गवाहों में से 11 ने अभियुक्त को पहचान लिया। इस परेड में अभियुक्त ने अपने आपको के लिए विवश नहीं किये जाने की प्रार्थना की। उसी दिन प्रीतमसिंह लोहारा के पद-चिह्नों की पहचान भी कराई गई। सोहनसिंह व सज्जनसिंह नामक परीक्षकों ने अभियुक्त के पद-चिह्नों की शिनाख्त कर ली। न्यायालय द्वारा भी परीक्षण से यह पाया गया कि प्रीतमसिंह फतहपुरी के जूते वे ही थे जो उसने घटना के समय पहन रखे थे। न्यायालय ने प्रीतमसिंह लोहारा को चलाया जिससे उसका लंगड़ा होना ज्ञात हुआ। प्रथम सूचना रिपोर्ट में भी उसका लंगड़ा होना अंकित था। इस प्रकार उपरोक्त सभी


तथ्यों एवं साक्ष्य के आधार पर विचारण चला और विचारण में अभियुक्तों को मृत्युदण्ड से दण्डित किया गया । उच्च न्यायालय द्वारा मृत्यु दण्ड की पुष्टि की गई। इसी के विरुद्ध विशेष इजाजत से उच्चतम न्यायालय में अपील प्रस्तुत की गई।




 निर्णय


उच्चतम न्यायालय में अपीलार्थियों की ओर से निम्नांकित तर्क प्रस्तुत किये गये


(क) अभियुक्तगणों से तथाकथित बरामदशुदा बन्दूकों एवं रिवाल्वरों की पहचान बाबत साक्षियों के भिन्न-भिन्न मत होने से उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।


(ख) प्रीतमसिंह फतहपुरी को पहचान परेड में अधिकांश गवाहों द्वारा नहीं पहचाना परेड से पहले ही ओमप्रकाश नामक पुलिस अधिकारी द्वारा गवाहों को बता दिया गया था।


(घ) प्रीतमसिंह लोहारा के लंगड़ा होने की बात लॉरी में बैठे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा नहीं कही गई थी।


(ङ) पद-चिह्नों की पहचान बाबत साक्ष्य विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि यह विज्ञान अभी अविकसित एवं प्रारम्भिक अवस्था में है। केवल पदचिन्हों की पहचान के आधार पर दोषसिद्ध किया जाना न्यायसम्मत नहीं है।.




प्रत्यर्थीगण की ओर से अपीलार्थी के तर्कों का खण्डन करते हुए यह कहा गया कि


(i) निचली दोनों अदालतों का निष्कर्ष सही है, अतः उनमें हस्तक्षेप नहींकिया जाना चाहिए।


 (ii) उच्चतम न्यायालय को तथ्यों में परिवर्तन करने की अधिकारिता नहींहै।


 (iii) दोषसिद्धि प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के कथनों, पहचान परेड में अभियुक्तों की पहचान, पद-चिह्नों के परीक्षण, रिवाल्वर की जब्ती एवं बरामदगी, खूनशुदा बुशर्तों की बरामदगी तथा घटना के बाद अभियुक्तों के भाग जाने आदि के आधार पर की गई है। यह साक्ष्य दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है।


उच्चतम न्यायालय ने दोनों पक्षों के तर्को पर गम्भीरता से विचार किया। न्यायालय ने अभियुक्त की दोषसिद्धि के आधारों तथा नीचे के दोनों न्यायालयों के निष्कर्ष को सही माना। प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के कथन, पहचान परेड में अभियुक्तों की पहचान, अभियुक्तों से रिवाल्वर एवं खूनशुदा बुशर्टो की बरामदगी, अभियुक्त लोहारा के लंगड़े होने का तथ्य आदि ऐसी पुष्टिकारक साक्ष्य है जिसके आधार पर अभियुक्तों को दोषसिद्ध किया जा सकता है।


परिणामस्वरूप अभियुक्तगणोंकी अपील को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा उनके मृत्युदण्ड की पुष्टि की गई।




 विधि के सिद्धा


इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा विधि के निम्नांकित सिद्धान्त प्रतिपादित किये 


(1) पद-चिह्नों के परीक्षण के निष्कर्ष के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाना सुरक्षित नहीं है, क्योंकि यह विज्ञान अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है


(2) विशेष इजाजत से की जाने वाली अपीलों में नीचे के न्यायालयों केसाक्ष्य के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष को बदलने की अधिकारिताउच्चतम न्यायालय को नहीं 


3) न्यायालय द्वारा अभियुक्त की पहचान के लिए स्वयं द्वारा जाँच कर कोई राय बनाना न्याय सम्मत नहीं है, क्योंकि इससे अभियुक्त की प्रतिरक्षा का अवसर समाप्त हो जाता है।है। 

प्रीतम सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब (ए.आई.आर. 1956 एस.सी. 415)

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