lokhitwad public interest litigation

लोकहितवाद ( Public Interest Litigation ) बीसवीं सदी की उत्तरार्द्ध को एक महत्वपूर्ण अवधारणा है । यह समाज के कमजोर व्यक्तियों को न्याय सुलभ कराने का एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है । हमारे संविधान के अनुच्छेद 39 क में जनसाधारण को न्याय उपलब्ध कराने की जो संकल्पना की गई है , उसे मूर्त रूप प्रदान करने का यह एक सार्थक माध्यम है । हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है , जो अशिक्षा , अज्ञानता एवं निर्धनतावश न्यायालय तक नहीं पहुँच पाता है । ऐसे वर्ग को सामाजिक एवं स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से न्याय सुलभ कराने का एक सरल उपाय है । वस्तुतः लोकहितवाद जनजीवन से जुड़ी समस्याओं के राकरण एक सशक्त मंच है । डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ' पीपुल्स यूनियन फॉर प्र.क्शन ऑफ इण्डिया ' के मामले में उच्चतम न्याय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि- " लोकतंत्र में लोकहितवाद को विधि के शासन ( Rule of Law ) का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है । विधि का शासन केवल सम्पन्न वर्ग के हितों की ही सुरक्षा नहीं करता है , अपितु समाज के कमजोर वर्ग को भी न्याय के समान अवसर सुलभ कराता है । " ( ए.आई.आर. 1980 एस.सी. 1579 ) लोकहितवाद की परिकल्पना ऐसे व्यक्तियों के लिए की गई है जो किसी कारणवश न्यायालय तक पहुँच पाने में असमर्थ है । फिर सामान्य हित रखने वाले अनेक व्यक्तियों की ओर से कुछ व्यक्तियों द्वारा अथवा किसी स्वैच्छिक संगठन द्वारा न्यायालय से अनुतोष प्राप्त करने का यह एक प्रभावी साधन है । लोकहितवाद क्या है ? लोकहितवाद से अभिप्राय ऐसे वाद या न्यायिक कार्यवाही से है जिसमें जनसाधारण का अथवा जनता के एक बड़े वर्ग का हित निहित हो । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ऐसा वाद या ऐसी न्यायिक कार्यवाही जिसमें जनसाधारण का व्यापक हित ( Public Interest at Large ) निहित हो , लोकहितवाद कहलाता है । अखिल भारतीय रेलवे शोषित कर्मचारी संघ बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ( ए.आई.आर. 1981 एस.सी. 298 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अर्थाभाव अथवा निर्धनता के कारण न्यायालय तक जल के उपयोग करने के अधिकार को लोकहित का विषय माना गयापहुंचने में असमर्थ है , तो उसकी ओर से कोई भी व्यक्ति अथवा स्वाच्छक संगठन उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कृष्णा अय्यर का मत है कि पीड़ित एवं व्यक्ति व्यक्ति के ही न्यायालय में जा सकने की संकुचित धारणा अब समाप्त न्यायालय में दस्तक दे सकता है । यही लोकहितवाद है । चुकी है । उसका स्थान अब ( i ) वर्ग कार्यवाही , ( ii ) लोकहितवाद , एवं ( iii ) प्रतिनिधिवाद आदि ने ले लिया है । कोई भी व्यक्ति जो किसी लोकहित से जुड़ है , ऐसे हितों की सुरक्षा के लिए न्यायालय में जा सकता है । उदाहरणार्थ गंगा के पानी में सबका हित है । उसके पानी का उपयोग जनसाधारण द्वारा किया जाता है , अत : गंगा के पानी को दूषित होने से बचाने के लिए उस पानी में हित रखने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा लोकहितवाद लाया जा सकता है । ( एस.सी. मेहता बनाम यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया ) ( ए.आई.आर. 1988 एस.सी. 1115 ) इसी प्रकार ताजमहल के सौन्दर्य की रक्षा के लिए लोकहितवाद लाया जा सकता है , क्योंकि ताजमहल में जनसाधारण का व्यापक हित निहित है । ' एम.सी. मेहता बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' ( ए.आई.आर. 1997 एस.सी. 734 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा ताजमहल के सौन्दर्य की रक्षा के लिए लगभग 292 कारखानों एवं उद्योगों को ताजमहल के आस - पास से हटाने का आदेश देते हुए यह कहा गया है कि ‘ ‘ ताज विश्व के आश्चर्यों में सरताज है । यह मुगलकालीन कला की अन्तिम बेजोड़ मिसाल है । शाहजहाँ की पत्नी मुमताज की चिरस्थायी यादगार है । वास्तुविदों के कला कौशल की अनुपम कृति है । कला और संस्कृति का संगम स्थल है । इसका सौन्दर्य राष्ट्र की एक अमूल्य धरोहर है । इसका संरक्षण एवं परिरक्षण हमारा दायित्व है । " ' एस.पी. गुप्ता बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' ( ए.आई.आर. 1982 एस.सी. 149 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि न्यायाधीशों के स्थानान्तरण को अधिवक्ताओं द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 • अन्तर्गत चुनौती दी जा सकती है , क्योंकि न्यायपालिका की स्वतन्त्रता में सभी का हित निहित है । 
 जम्मू कंजूमर कौंसिल बनाम स्टेट ' ( ए.आई.आर. 2003 एन.ओ.सी. 256 जम्मू एण्ड कश्मीर ) के मामले में जम्मू - कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा प्रदूषण रहित जल के उपयोग करने के अधिकार को लोकहित का विषय माना गया है
लोकहितवाद के विषयों की सूची अत्यन्त लम्बी है । यह प्रत्येक मामले उसकी परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि किसे लोकहितवाद माना जाए । सामान्यतः निम्नांकित विषयों को लोकहित का विषय माना गया है
 ( क ) बधुआ मजदूरी 
( ख ) श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी , ( ग) बाल शोषण , 
( घ ) महिला उत्पीड़न , 
( ड ) पुलिस यंत्रणा ,
 ( च ) पर्यावरण संरक्षण , 
( छ) दलित एवं पिछड़े वर्गों पर अत्याचार , 
( ज ) पारिवारिक पेंशन , 
( झ ) नारी निकेतनों की दुर्दशा 
( ञ) कारागृहों में शोषण , उत्पीड़न एवं अव्यवस्था आदि । 
 बम्बई डाइंग एण्ड मैन्युफैक्चरिंग कं.लि. बनाम बम्बई एन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप ( ए.आई.आर. 2006 एस.सी. 1489 ) के मामले में पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण Ecology & Environment ) को लोकहितवाद का विषय माना गया है । ' प्रतुल कुमार सिन्हा बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा ' ( ए.आई.आर. 1989 एस.सी. 1783 ) के मामले में नेत्रहीन बालिकाओं के यौन शोषण को लोकहितवाद का विषय माना गया है । ' पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' ( ए.आई.आर. 1982 एस.सी. 1473 ) के मामले में न्यूनतम मजदूरी को लोकहित का विषय माना गया है । इस प्रकार कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लोकहितवाद के लिए निम्नांकित बातें अपेक्षित हैं 
( क ) उसका व्यापक जनहित से जुड़ा होना ,
(ख) उसमें निजी हित का निमित्त नहीं होना तथा उसका राजनीति से प्रेरित नहीं होना
राजनीति से प्रेरित मामलों को लोकहित वाद नहीं माना गया है
मिलाकर लोकहितवाद की कसौटी यह है कि वह व्यापक जनहित ' Public Interest at Large ) से जुड़ा मामला है ।
 कुल पत्र , पोस्टकार्ड एवं समाचार पत्र की कतरनें - पिछले दिनों लोकहितवाद दायरा इतना विस्तृत हो गया कि हमारे शीर्षस्थ न्यायालयों ने पत्रों , ( ii ) पोस्टकार्डों एवं ( iii ) समाचार पत्रों के समाचारों को रिट मानकर पीड़ित पक्षकारों को अनुतोष प्रदान किया है । इसे हम लोकहितवाद का बढ़ता हुआ दायरा कहें या ' न्यायिक सक्रियता ' ( Judicial Activism ) यह न्यायिक जगत् में एक क्रान्तिकारी कदम है । अनेक अवसरों पर पत्रों द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में लोकहित के मामले उठाए गए और न्यायालयों ने उनमें राहत प्रदान की है ;  
पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' ( ए.आई.आर. 1982 एस.सी. 1473 ) के मामले में एसियाड प्रोजेक्ट में नियोजित श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं किए जाने का मामला ' पत्र ' द्वारा उठाया गया । उच्चतम न्यायालय ने न्यूनतम मजदूरी का भुगतान का आदेश देते हुए कहा कि " अब लोकहित के मामलों में समाज का कोई भी व्यक्ति या संस्था न्यायालय में समावेदन कर सकता है । न्यायालय के दरवाजे अब न केवल उद्योगपतियों , ठेकेदारों , तस्करों एवं धनाढ्य व्यक्तियों के लिए खुले हैं अपितु निर्धन व्यक्तियों के लिए भी खुले हैं । " ' एम.सी. मेहता बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ' ( ए.आई.आर. 1987 एस.सी. 1086 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक ' पत्र ' को रिट मानते हुए कहा कि केवल एक न्यायालय को नाम निर्देशित पत्र भी रिट के रूप में ग्राह्य किया जा सकता है ।
' प्रतुल कुमार सिन्हा बनाम स्टेट ऑफ उड़ीसा ( प्रबन्ध के आदेश दिए गए । 1783 ) के मामले में नेत्रहीन बालिका विद्यालय की बालिकाओं का यौन शोषण करने वाले ' समाचार ' को रिट मानते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच व समुचित राजस्थान किसान संगठन बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान ( ए.आई.आर. 1989 राजस्थान 10 ) के मामले में एक महिला द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखा गया जिसमें उसने पुलिस पर अत्याचार एवं अनियमितताओं का आरोप लगाया । 
उच्च न्यायालय ने इसे लोकहित का मामला मानत हुए समुचित ' सुनील बत्रा बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन ' ( ए.आई.आर. 1980 एस.सी. 1579 ) के मामले में कारागृह में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक बन्दी के साथ कारागृह के वार्डन द्वारा निर्दयतापूर्ण एवं अमानवीय व्यवहार किया गया था . जिसकी शिकायत कारागृह के एक अन्य बन्दी द्वारा पत्र के माध्यम से न्यायालय को की गई । इस पत्र को रिट मानते हुए न्यायालय द्वारा कारागृह के उच्चतम अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि 
( i ) बंदियों के साथ निर्दयतापूर्ण एवं अमानवीय व्यवहार नहीं किया जाए तथा 
( ii ) दोषी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाए । 
ऐसे और भी अनेक मामले हैं जिनमें ' पत्रों ' एवं ' समाचारों ' को रिट मानते हुए न्यायालय द्वारा समुचित कार्यवाही की गई है । 
एस . सी . गुप्ता बनाम यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया ( ए.आई.आर. 1982 एस.सी. 149 ) , एस.सी. मेहता बनाम यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया ए.आई.आर. 1987 एस.सी. 1086 ) यहाँ यह उल्लेखनीय है कि किसी विषय पर सिविल वाद के लम्बित रहते लोकहितवाद नहीं लाया जा सकता है । 
( संतोष सूद बनाम गजेन्द्र सिंह , ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 593 ) निष्कर्ष सुलभ कराना है । यह मानवाधिकारों की अवधारणा का पोषक है । ' इस प्रकार लोकहितवाद का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को न्याय मैनेजिंग कमेटी बनाम सी.के. राजेन ( ए.आई.आर. 2004 एस.सी. 561 ) The object of public interest litigation is to make justice available to downtrodden etc. having regard to concept of human rights .
अभिनिर्धारित किया गया है कि - लोकहितवाद की धारणा का मुख्य उद्देश्य समाज कमजोर वर्ग की सहायता करना एवं उन्हें न्याय के समान अवसर उपलब्ध कराना है । ' स्टेट ऑफ उत्तरांचल बनाम बलवन्त सिंह चौफल ' ( ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 2550 ) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है । कि ( क ) न्यायालयों को सही एवं उचित लोकहितवादों का प्रोत्साहन देना चाहिए ।
 ( ख ) लोकहितवादों के लिए एकरूप प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए । 
ग ) यह समाधान कर लिया जाना चाहिए कि लोकहितवाद व्यापक जनहित से जुड़ा हुआ है । 
( घ ) विद्वेषपूर्ण आशय को निरुत्साहित किया जाना चाहिए ।
 ङ ) लोकहितवाद का मुख्य उद्देश्य लोकहितों की रक्षा करना है ।

टिप्पणियाँ

  1. सही कहा कि अपने आप को शाति तब ही मिलती हैं जब दूसरो का भला किया जाये

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